भारत विकास संगम केन्द्रीय समिति 2025 तक
1. श्री के.एन. गोविंदाचार्य | संस्थापक |
2. श्री बसवराज पाटिल, सेडम | संरक्षक |
3. श्री वेणुगोपाल रेड्डी | संरक्षक |
4. श्री संजय पाटिल | संरक्षक |
5. श्री महेष शर्मा | संरक्षक |
6. श्री माधव रेड्डी | राष्ट्रीय संयोजक |
7. श्री के.जी. मुरली | राष्ट्रीय सह संयोजक |
8. श्री धन बहुदुर क्षेत्रि | राष्ट्रीय सह संयोजक |
9. श्री अशोक टंकसाले | राष्ट्रीय सह संयोजक |
10. श्री राकेश जैन | राष्ट्रीय सह संयोजक |
11. श्री सुरेश अग्निहोत्री | आयोजक कार्यदर्शी |
12. CA Dr. सी.आर. धवलगी | राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष |
एक संघठन व्यक्ति से भी बड़ा है और समाज संघठन से भी बहुत बड़ा है। |
एक संक्षिप्त परिचय
श्री गोविंदाचार्य, जिन्होंने हाल ही में सहस्र चंद्र पूर्णिमा दर्शन कर चुके हैं। जिन्होंने सुपर कम्प्यूटर का मस्तिष्क पाया है। वें सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में सक्रियता के अगुआ हैं। आपका जन्म तिरुपति में हुआ।
श्री गोविंदाचार्य ने वर्ष 1960 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आर.एस.एस) से अपने सामाजिक जीवन की शरुआत की। वर्ष 1962 में आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से गणितशास्त्र में एम.एस.सी की उपाधि पहले वर्ग में प्राप्त की।
श्री गोविंदाचार्य ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया है। वर्ष 1975 में आपात स्थिति में लोक नायक जयप्रकाश नारायण के साथ कार्य किया। नयी सहस्राब्दि की नई कार्य योजनाओं को प्रभावित करने वाले यानी उदारीकरण, उद्योगों का निजीकरण और विचारहीन वैश्विकरण जैसे मुद्दों का भारतीय जनता, राजनीति, अर्थनीति और संस्कृति पर पड़ रहे प्रभावों का अध्ययन करने के लिए उन्होंने आर.एस.एस की स्वीकृति लेकर अध्ययन आरंभ किया। उन्होनें इन विषयों का दो वर्ष तक अध्ययन किया। यह अध्ययन 15 जनवरी 2003 को पूरा हुआ। इस दौरान उन्होंने देशभर में प्रवास किया। भारत की पृष्ठभूमि, उसके तत्व और देश के महत्वपूर्ण अंशों को समझा।
उन्हें निश्चय हो गया कि मानव केंद्रित विकास के स्थान पर प्रकृति केंद्रित विकास के माध्यम से ही देश का सर्वांगीण विकास संभव है। विकेंद्रीकरण, बाजारवाद से मुक्ति, विवाधिकरण, स्थानिकरण और उसके साथ संयमित उपभोग ही मानव केंद्रित विकास के आधार होंगे।
गोविंदाचार्य ने संपूर्ण देश में प्रकृति केंद्रित सामाजिक, आर्थिक सिद्धांतों का प्रचार करने एक अभियान प्रारंभ किया। उनकी उद्घोषणा थी “सरकार का कर्तव्य समाज की सेवा में अंतर्निहित है।” उनका पहला भाषण 29-10-2001 में कर्नाटक के गुलबर्गा जिले के सेडम में था। उसके बाद देश भर में उन्होंने मैत्रिपूर्ण समान सोच के लोगों को एकत्रित करने का कार्य किया।
उनके साथ इस अभियान में कई अनुयायी रहे जो अन्य विचार परिवार और पक्षों से थे। सृजनशील, रचनात्मक, क्रांतिकारी मन के, आधुनिक विचार से संपन्न लोगों के साथ मिलकर उन्होंने भारत विकास संगम, कौटिल्य शोध संस्थान, राष्ट्रीय स्वाभिमानी आंदोलन की स्थापना की।
श्री गोविंदाचार्य जी द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की स्थापना के पीछे भारतीय राजनीति के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।दरअसल वर्ष 2004 में विदेशी मूल की महिला श्रीमती सोनिया गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनने वाली थी। उस वक्त श्री गोविंदाचार्य ने राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन बैनर के तले सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को सफल चुनौती दी थी। बाद में श्री गोविंदाचार्य ने देश की सज्जन शक्ति को एकत्रित कर जिस भारत विकास संगम की स्थापना की थी उस भारत विकास निगम का पहला सत्र पवित्र शहर वारणासी में हुआ। यहाँ स्वयंसेवक की उपलब्धियों के विषय में एक संक्षिप्त विवरण दिया और उनके कार्यक्षेत्र का विवरण भी।
लक्ष्य:
- थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली।
- चाहत से देसी, जरूरत से स्वदेशी, मजबूरी में विदेशी। अर्थात स्थानीय वस्तु को पहले चयन कर लो, स्वदेशी जब आवश्यक हो, लेकिन विदेशी वस्तु तब जब वह अनिवार्य हो।
- दृष्टिकोण बदलने पर, दृश्य भी बदलता है।
- मेरा गाँव, मेरा देश, मेरी ज़िला, मेरा दुनिया।
- साहस पहल और प्रयोगों के साथ आगे बढ़ो।
- संवाद सहमति सहकार के साथ विकास के विशाल पथ पर आगे बढ़ना।
- भारत भूमि पर देवताओं की विशेष दया है, यहाँ एक दैविक त्रिकोण निरंतरता से कार्य कर रहा है।
- गोमाता, धरती माता, घर की माँ के दैवीय त्रिकोण में ही देश सुरक्षित है।
- देश विकास तब करेगा, जब समाज आगे चलेगा, और उसको समर्थन देते हुए सरकार।
- देश की रक्षा का अर्थ है, जल, वन, प्राणियाँ, भूमि और भाषा- साहित्य और संस्कृति की रक्षा।
- जिस तरह फुटबाल की खेल में, गेंद को बिना पकड़े गोल बनाते हैं, ऐसे ही ध्येय की साधना होनी चाहिए।
- जैसा भोजन वैसा मन, जैसी अर्थव्यवस्था वैसे विचार।
- भारत साधु-संतों से चलाया जा रहा है, शक्ति से नहीं
- लोगों की पहचान उनके गुण, चरित्र और स्वभाव से हो, जिसका आधार है व्यवहार, न कि बाह्य रूप और भूतकाल।
- प्रजा प्रभुत्व के चार शत्रु, पक्ष, शक्ति की दलाली, दिखावा और आयुध।
- हम विकास की ओर तभी अग्रसर होते हैं जब हम एक गाड़ी में होते हैं जिसके दो पहिये होते हैं, एक स्वदेशीपन और दूसरा विकेन्द्रीकरण।
आधार और पृष्ठभूमि
- पिछली दो शताब्दियों से भारत की पहचान को मिटाने का प्रयत्न चल रहा है ।
- बौद्धिक रूप से
- सेवा क्षेत्रों द्वारा
प्रथायें और आदतों द्वारा
- भौतिक साधनों और उपभोक्ता प्रसाधनों के प्रभाव से संतृप्ति के ध्येय और उसके पथ बदल गये हैं।
- जो लोग भले कार्यों में लगे हुए हैं, उनको चाहिये कि कभी-कभी साथ मिले, अपने अनुभवों को सब के भले के लिए बाँट ले और विकास के लिये स्फूर्ति बन जाये। यह भारत का आत्म है। उसका सबसे बड़ा घटक है ज़िला।
- देश में 127 भू- पर्यावरणीय क्षेत्र हैं। प्रत्येक क्षेत्र में सफल प्रयोग खड़े हो यह प्रयास है। देश भर से करीब 2000 सफल प्रयोगों की एक मार्गदर्शिका यानी डायरेक्टरी बने। देशभर में रचनात्मक रीति से कार्यरत सक्रिय 10000 समूहों से सतत संपर्क हेतु एक संपर्क सूची ( मेलिंग लिस्ट) बने। तत्पश्चात हर जिले में नियमित रूप से “जिला विकास संगम” परस्पर परिचय और सहयोग के लिए बन जाए तो प्राकृतिक विकास का कुछ रचनात्मक स्वरूप दिखाई पड़ेगा।
- माहिती तंत्रज्ञान से हम अदृश्य होता हुआ विकेन्द्रीकरण और संपत्ति और शक्ति का केन्द्रीकरण की समस्या का समाधान ढूँढ़ सकते हैं।
- मनोरंजन, उपभोक्तापन और अशिष्टता के नाम पर हमें भव्य प्रदर्शन नहीं करना चाहिये।
- ऐसी आर्थिक व्यवस्था हो जिससे गाँवों में उत्पन्न होने वाला राजस्व गाँवों में ही रहे।
- ग्राम विकास तभी होगा जब राष्ट्रीय बजट का कम से कम 7% सीधे ग्राम पंचायत को जाये।
- एक शताब्दि पहले मानव और देशी गाय का अनुपात 1 : 9 था। अब वह 9 : 1 हो गया है। गो संरक्षण और गो संख्या बढ़ाने के लिए केन्द्र खोलकर इस अनुपात को बढ़ा सकते हैं।
- बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिये हर बच्चे को ½ kg देशी सब्जी ½ kg देशी फल और ½ kg दूध, देशी गायों का देना होगा।
- सबके लिये काम, सब के लिये भोजन। इसे पाने हस्तकला और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना होगा।
- महात्मा गाँधी, श्री अरोबिंदो और टेगोर के विचारों को कार्यगत करने का प्रयास करना चाहिये।
- भारतीय मानस को समाजवाद और पूँजीवाद सूक्त नहीं है। हम अपने देश को अमेरिका या यूरोप जैसे नहीं बना सकते। हमें खुद अपनी राह ढूँढ़नी पड़ेगी जिसमें मानवतावादी पथ हो।
- सहस्रों वर्षों की गुलामी के कारण और साथ में 75 वर्षों तक पश्चिम के अंधानुकरण के कारण हमारी वर्तमान स्थिति बनी है। हमें अब विकेन्द्रीकरण से विकास के बारे में सोचना होगा। जिला स्तर से नीचे कार्य करना होगा। धीरे-धीरे देशीयता, आत्मनिर्भरता ग्रामीण आंदोलन, श्रम का आदर इनके साथ कार्य करना होगा।
- बड़े ध्येयों को अपनाना होगा। इसके अतिरिक्त लालच, प्रबल इच्छा इनको कम करे तो दैविक शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।
- इस बड़े समाज के साथ चलना होगा। यही सोचकर कि हम उसके संतान है। इससे हमें सहयोग, स्वीकृति, सलाह, सहभागित्व और मैत्री का अनुभव होगा। यदि हम सोचे कि हम राजा है तब हमें प्रतिक्रियायें और खतरें मिलेंगे।
भारत विकास संगम की ओर से तीन महीनों में एक बार सभा होती है। पिछले 20 वर्षों में ऐसी सभाएँ लगातार कई शहरों में हुए जैसे केरल, कन्याकुमारी, चेंगनूर, सेडम, विजयपुर, कन्हेरी, मुंबई, सूरत, अमृतसर, वृंदावन, वारणासी, डगमगपुर, दिल्ली, जुनागढ़, हैदराबाद और कल्वकुर्ती । प्रतिवर्ष शिविर लगाये जाते हैं जहाँ सृजन शक्ति, शहरी संगम, ग्राम संगम आदि में कार्यक्रम होते हैं जैसे सृजनशीलता, युवा, शहर और गाँवों पर कार्यक्रम। छः सांस्कृतिक मेले हुए हैं, इनकी तैयारी- संपर्कता, अभियान सभी भारत विकास संगम ने किया। एक मातृशक्ति संगम भी हुबली में हुआ। आगामी 7वाँ सांस्कृतिक मेला 2025 में सेडम में होने जा रहा है। इसके पूर्व उत्तर में एक मातृ संगम, युवा, ग्राम और शहरी संगम पूर्व और पश्चिम में भी होगा। भारत विकास संगम को केन्द्रीय समिति और माध्यम समिति इनके विषय में बातचीत चला रहे हैं।
भारत विकास संगम खजुराहो, मध्य प्रदेश
संगम और उत्सव
भारत विकास संगम ने कई सांस्कृति उत्सव और मिलन हर तीन वर्षों में आयोजित किया है। इन मेलों में कई कार्यकर्ता और संघटन जो पर्यावरण केन्द्रित सर्वतोमुखी विकास का कार्य करते थे, साथ बैठे, विचारों का आदान-प्रदान हुआ, साधनों को एक दूसरे के साथ बाँटा, अपने कौशल्य को एक दूसरे से बाँटा। इसे कुम्भ मेला जैसा उत्सव बना दिया। प्रत्येक दिन सत्र और प्रदर्शिनी एक विशेष नाम से चलाया जाता जैसे बाल गंगम, युवा संगम, महिला संगम, ज्ञान संगम, कृषि संगम, कायक संगम, विज्ञान संगम, तंत्रज्ञान संगम। इस तरह 5 संगम हो चुके हैं और 6th और 7th संगम की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस बीच कुछ विशिष्ट जन कुछ विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं जैसे सृजनशक्ति संगम, मातृशक्ति संगम, जिल्ला विकास संगम और युवशक्ति संगम आदि। ये संगम देश के कुछ जिलों में आयोजित हुए थे। कुछ विशिष्ट जानकारी और चित्र अगले पृष्ठों में देख सकते हैं। इन में कुछ उपलब्धि प्राप्त है, कुछ पद्म पुरस्कार प्राप्त है, कुछ ऐसे जो अपनी वैयक्तिक उपलब्धि के कारण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में आमंत्रित है। कुछ जिन को राज्य प्रशस्ति मिली है उन्हें भी यहाँ आमंत्रित किया है। कहने का तात्पर्य है कि यहाँ कुछ ऐसे महान विभूतियों का उदाहरण है जो अपने कार्य और प्रार्थना से समूचे समाज को अपने साथ कर लिये हैं। यह संघटन कोई पदवी, शक्ति या लाभ के लिये बसाया नहीं गया है ।
प्रथम सांस्कृतिक उत्सव वाराणसी, उत्तर प्रदेश
दूसरा सांस्कृतिक उत्सव चुनार, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
भारत सांस्कृतिक उत्सव 3, कलबुरगि कंपु, कलबुरगी का सुगंध – 2010 कलबुरगी, कर्नाटक
चौथा सांस्कृतिक उत्सव कन्हेरी, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
इस उत्सव में करीब 9 लाख लोगों ने भाग लिया। 100 एकड के क्षेत्र में उत्सव चला। उत्सव के समय, 90 उपलब्धि प्राप्त, 45 हैदराबाद कर्नाटक के, 45 देश के अन्य राज्यों से सम्मानित किये गये। कम से कम 9 उपलब्धि प्राप्त प्रतिदिन 9 दिनों के लिये ।
देश के कई विख्यात अतिथि, जैसे डा.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, बाबा रामदेव उत्सव में उपस्थित थे। 20 हज़ार माताओं ने एक लाख बच्चों को खाना खिलाया। 26 विभाग में हुए विकासों को दिखाने एक प्रदर्शिनी भी आयोजित की गई थी। प्रदर्शिनी इन विभागों में था कृषि विज्ञान, प्रतिभा शोध, शिक्षा, नौकरी, नारी विकास और पर्यटन विभाग।
पाँचवाँ सांस्कृतिक उत्सव कग्गोडु, विजयपुर, कर्नाटक
छटवाँ सांस्कृतिक उत्सव कल्वकुर्ति, तेलंगाना
प्रथम मातृशक्ति संगम, हुब्बल्ली
जिल्ला विकास संगम परबनि, महाराष्ट्र
सातवाँ सांस्कृतिक उत्सव की तैयारी
प्रारंभिक सभा नृपतुंग डिग्री कालेज, सेडम में हुई । 15.02.2022 को कोट्टाला बसवेश्वर भारतीय शिक्षण समिति का स्वर्ण जयंती महोत्सव और सातवाँ सांस्कृति उत्सव शिक्षण समिति की संरक्षण में।
भविष्य की योजनायें
- 1. उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम विभाग बनाना, संबोधित संघटनों के कार्य, परियोजनायें और उपलब्धियाँ
- 2. दूसरा मात्रुशक्ति संगम का आयोजन
- 3. भारत विकास संगम का रजत जयंति महोत्सव का आयोजन 2029 में । रचनात्मक नव तीर्थ का आयोजन देश के माध्यमिक सतहों में।
सातवाँ सांस्कृतिक उत्सव, (29.11.2025 से 6.2.2025 तक)
मलखेड़ के पास 250 एकड भूमि पर 15 गाँवों में आदर्श ग्राम विकास का कार्य आरंभ हो चुका है। मलखेड़ कल्याण कर्नाटक के सेडम और कलबुर्गी के बीच स्थित है। इस में बाल लोक के लिय 2 एकड, 60 एकड भूमि, एक बस स्टेंड के लिये, 10 एकड अतिथि गृह के लिये (अस्थायी), 20 एकड सभागृह के लिये, दस एकड भोजन गृह और स्टोर के लिये, 6 एकड वैज्ञानिक प्रयोगशाला के लिये, 11 एकड कृषि के लिये, 8 एकड व्यवहार के लिये, 10 एकड अन्य सभा गृहों के लिये दिये गये हैं। इस परियोजना के प्रायोजक होंगे श्री कोट्टल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण समिति, सेडम, स्वर्ण जयंति उत्सव समिति और विकास एकेडमी कलबुर्गी।
परिसर से संस्कृति तक
भारत विकास संगम संपादकीय समिति
1. श्री माधव रेड्डी | 9440788282 |
2. श्री के.जी. मुरली | 9447033418 |
3. डॉ. वासुदेव अग्निहोत्री | 9448813482 |
4. डा. आर.वी. जहगीरदार | 9880948948 |
5. श्री विमल सिंह | 9868303585 |
6. श्री सुरेश अग्निहोत्री | 9451220932 |
7. श्री अशोक टंकसाले | 9423398833 |
8. सीए डॉ. सी.आर. धवलगी | 9448111377 |
भारत विकास संगम के विषय में अधिक जानकारी के लिये अभिदेशन हमारे प्रकाशन
- प्रणालीगत परिवर्तन का मार्ग
- प्रायोगिक मैदान
- प्रकृति केंद्रित विकास
- प्रकृति केंद्रित समग्र विकास में महिलाओं का योगदान
- नव देवता नव तीर्थ
150-200 वर्षों की अवधि में हमें आदत पड़ गई कि हम संसार की मनस्थिति और उसके नियमों का पालन करे। हम अपने सिद्धांतों को ढूँढ़ लिया है। साहस, चरित्र, मंगलकारक आरंभ, प्रयोग के लिये जो वार्तालाप सबकी राय और सहयोग पर आधारित है।